पीएचडी शोधार्थी को हाईकोर्ट से राहत

7 वर्ष पहले
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नागपुर.  राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागुपर विश्वविद्यालय से पीएचडी की इच्छा रखने वाले एक अभ्यर्थी को हाईकोर्ट से राहत मिली है। 
- याचिकाकर्ता राजू तिरपुडे ने वर्ष 2012 के नियमों के मुताबिक  पीएचडी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की थी। मगर जब उसके रजिस्ट्रेशन का समय आया तब तक विवि नई प्रवेश परीक्षा लागू कर चुका था।
- ऐसे में आवेदक का आवेदन खारिज कर दिया गया था।  विवि के इस फैसले के खिलाफ शोधार्थी ने हाईकोर्ट की शरण ली थी।  इस मामले में हाल ही में हुई सुनवाई में विवि ने शपथपत्र दिया कि वे शोधार्थी का आवेदन स्वीकारने के लिए तैयार है।
- ऐसे में हाईकोर्ट से मामले का निपटारा कर दिया गया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता शंकर बोरकुटे ने पक्ष रखा। 
यह है मामला 
- नागपुर विश्वविद्यालय ने 12 दिसंबर 2012 को नोटिफिकेशन निकाला था। इसके अनुसार वर्ष 2013 में पीएचडी प्रवेश परीक्षा आयोजित की गई। याचिकाकर्ता राजू तिरपुडे ने भी पेट परीक्षा दी, और सफल हुए।
- शोधार्थी को पीएचडी पूरी करने के लिए 5 वर्ष का समय दिया गया। जुलाई 2015 को   शोधार्थी ने चंद्रपुर के राजीव गांधी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड रिसर्च सेंटर को रिसर्च के लिए चुना और शुल्क के 5 हजार रुपए जमा किए।
- याचिकाकर्ता के अनुसार जब विवि की आरआरसी की बैठक हुई तो उसका पीएचडी रजिस्ट्रेशन का आवेदन खारिज कर दिया गया।
- आरआरसी समिति ने कारण बताया कि शोधार्थी का रिसर्च सेेंटर विवि के अधीन नहीं आता, इसलिए उसका आवेदन खारिज किया जा रहा है। ऐसे में शोधार्थी ने नागपुर के सदर स्थित अंजूमन इंजीनियरिंग कॉलेज को रिसर्च सेंटर चुना और फिर से आरआरसी को आवेदन सौंपा।
- नागपुर विवि ने पीएचडी प्रवेश परीक्षा के नियमों में बदलाव कर दिया। विवि ने पेट-1 और पेट-2 इन दो चरणों में परीक्षा आयोजित करनी शुरू कर दी। ऐसे में नए नियमों के मुताबिक प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण ना करने के कारण शोधार्थी का आवेदन एक बार फिर खारिज कर दिया गया।
 

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